स्वर विज्ञान के माध्यम से बीमारियों को कैसे ठीक करें

हमारी श्वसन प्रणाली (Respiratory System) एक जटिल तंत्र (Complex System) है, जो स्वचालित रूप से काम करता है। श्वास लेना, शरीर की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। 

लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह श्वास प्रक्रिया न केवल शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती है, बल्कि इसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से भी है? 

स्वर विज्ञान के द्वारा हम बीमारियों को ना केवल नियंत्रित (Control) कर सकते हैं, बल्कि शरीर को पूरी तरह बीमारियों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि स्वर विज्ञान क्या है, इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है, और यह भी जानेंगे कि बिमारियो को कैसे सही करे स्वर विज्ञान से

स्वर विज्ञान क्या है?

स्वर विज्ञान एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है, जो श्वास (Breathing) के प्रकार और उसके शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करता है। इसे “स्वरों” का विज्ञान कहा जाता है, जहां ‘स्वर’ का अर्थ है ‘श्वास’। यह विज्ञान हमें बताता है कि श्वास की प्रक्रिया केवल हवा के अंदर-बाहर करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे शरीर और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे शरीर की प्रक्रिया श्वास के प्रकार से नियंत्रित होती है।

आचार्य श्री शुभचंद्र जी महाराज और अन्य प्राचीन गुरुओं ने स्वर विज्ञान पर गहन शोध किया है। उनका कहना था कि यदि हम अपने श्वास का सही तरीके से उपयोग करें, तो हम न केवल शारीरिक बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त कर सकते हैं।

श्वास कैसे काम करती है?

हमारी नाक की दो नासिकाएं हैं – दाईं नासिका (Right Nostril) और बाईं नासिका (Left Nostril)। हालांकि नाक एक होती है, लेकिन नासिकाएं दो होती हैं, और दोनों का कार्य अलग-अलग होता है।

दाईं नासिका (Right Nostril) –

इसे सूर्य नासिका भी कहा जाता है, और यह शरीर में गर्मी का संचार करती है। जब हम दाईं  नासिका से श्वास लेते हैं, तो चाहे बाहर का तापमान कैसा भी हो, वायु हमारे शरीर में गर्म हवा के रूप में प्रवेश करती है। यह गर्मी शरीर की क्रियाओं को उत्तेजित करती है और शरीर को सक्रिय बनाती है।

बाईंं नासिका (Left Nostril)-

इसे चंद्र नासिका कहा जाता है, और यह शरीर में ठंडक लाती है। जब हम बाईं नासिका से श्वास लेते हैं, तो बाहर का तापमान चाहे जितना भी गर्म हो, वायु ठंडी होकर शरीर में प्रवेश करती है। यह ठंडक शरीर को शीतल और शांत रखती है, जिससे तनाव और उत्तेजना कम होती है।

स्वर विज्ञान के अनुसार, एक स्वस्थ व्यक्ति में नासिकाओं का संचालन एक निश्चित क्रम में होता है। एक नासिका लगभग ढाई घड़ी यानि एक घंटे तक सक्रिय रहती है और उसके बाद दूसरी नासिका स्वाभाविक रूप से सक्रिय हो जाती है। 

बीमार क्यों होते हैं?

अब सवाल उठता है कि यदि हमारी श्वास की प्रक्रिया इतनी स्वाभाविक और अद्भुत है, तो फिर हम बीमार क्यों होते हैं? 

इसका उत्तर है हमारी लापरवाह जीवनशैली। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम प्राकृतिक नियमों का पालन नहीं करते। खाने-पीने से लेकर सोने-जागने तक, हर चीज में हम अनुशासन (Discipline) से हट चुके हैं।

आधुनिक जीवनशैली में हम बिना किसी नियम के खाते-पीते हैं। हम लगातार कुछ न कुछ खाते रहते हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि हमारे शरीर को कब आराम की जरूरत है। इसके परिणामस्वरूप, हमारे शरीर के स्वाभाविक सेंसर, जो कि श्वास की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं, सही ढंग से काम नहीं कर पाते। जब शरीर को ठीक से आराम नहीं मिलता और हम असमय खाना खाते हैं, तो यह शरीर के लिए हानिकारक साबित होता है।

खाने और पानी के सही नियम: 

स्वर विज्ञान न केवल श्वास के तरीकों को समझने की शिक्षा देता है, बल्कि यह हमारे भोजन और पानी के सेवन के समय और तरीके पर भी जोर देता है।

खाने के दौरान पानी पीने का प्रभाव: 

जब हम खाना खाते हैं, तो शरीर के अंदर पाचन की प्रक्रिया शुरू होती है। भोजन को पचाने के लिए हमारे शरीर के अंदर अग्नि उत्पन्न होती है। यह अग्नि खाने को पचाने का काम करती है। लेकिन यदि हम खाने के साथ पानी पीते हैं, तो यह अग्नि मंद हो जाती है और पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप खाना सही ढंग से पच नहीं पाता और गैस्ट्रिक (Gastric) समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इससे बचने के लिए हमें खाना खाते समय और खाने के बाद कम से कम एक घंटे तक पानी (ठंडी तासीर का खाद्य पदार्थ) नहीं पीना चाहिए। इससे पाचन क्रिया सुचारू रूप से चलती रहती है और शरीर में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती।

खाने के समय सही नासिका का प्रयोग:

स्वर विज्ञान के अनुसार, जब हम खाना खाते हैं, तो हमें दांयी नासिका (Right Nostril) से श्वास लेना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि दाईं नासिका से गर्म हवा शरीर में प्रवेश करती है, जो पाचन क्रिया को तेज करती है। इससे शरीर में अग्नि उत्पन्न होती है और खाना सही ढंग से पच जाता है। इसके विपरीत, यदि हम बाईं नासिका से श्वास लेते हैं, तो ठंडी हवा शरीर में प्रवेश करती है, जो अग्नि को मंद कर देती है और पाचन क्रिया को धीमा कर देती है।

निष्कर्ष:

आज इस ब्लॉग में हमने देखा कि बिमारियो को कैसे सही करे स्वर विज्ञान से, साथ ही स्वर विज्ञान के बारे में भी जाना। स्वर विज्ञान एक प्राचीन और प्रभावी विज्ञान है, जो श्वास के माध्यम से हमारे शरीर और मस्तिष्क के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। यह हमें सिखाता है कि सही नासिका से श्वास लेकर हम शरीर के तापमान, पाचन, और मानसिक स्थिति को नियंत्रित कर सकते हैं। शारीरिक बीमारियों से बचाव और उपचार के लिए स्वर विज्ञान का नियमित अभ्यास अत्यधिक लाभकारी हो सकता है। अगर हम अपनी दिनचर्या में इसे सही ढंग से अपनाएं, तो हम न केवल स्वस्थ जीवन जी सकते हैं, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त कर सकते हैं। 

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